१. देवतर्पण- नदी वा पोखरि में तीतले वस्त्र पहिरि नाभि तक पानि में ठाढ़ भय अथवा स्थल पर तर्पण करवाक हो तँ सुक्खल वस्त्र धारण कय आसन पर पू...
१. देवतर्पण- नदी वा पोखरि में तीतले वस्त्र पहिरि नाभि तक पानि में ठाढ़ भय अथवा स्थल पर तर्पण करवाक हो तँ सुक्खल वस्त्र धारण कय आसन पर पूब मुँह बैसि दहिन हाथ में तेकुशा लय वाम हाथ में उपयमन अर्थात् जुट्टी सन गुहल कुश (बिरणी) लय दहिन हाथ में यव ओ जल लय देव तीर्थ सँ नीचाँ में राखल कुश पर जल खसबैत तर्पण करी- ॐ तर्पणीया देवा आगच्छन्तु। ॐ ब्रह्मास्यतृप्यताम् । ॐ विष्णुस्तृप्यताम् । ॐ रुद्रस्तृप्यताम् ।। ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम् ।
ॐ देवाः यक्षास्तथा नागाः गन्धर्वा ऽपसरसो ऽसुराः ।
क्रूराः सर्पाः सुपर्णाश्च तरवो जम्भकाः खगाः ।।
विद्याधराः जलाधाराः तथैवाकाशगामिनः ।
निराधाराश्च ये जीवाः पापे ऽधर्मेरताश्चये ।।
तेषामाप्यायनायै तद् दीयते सलिलं मया ।।
तकर बाद उत्तराभिमुख आ नीवीती (यज्ञोपवीत के कण्ठावलम्बित कए) भए कायतीर्थ (कनिष्ठा आंगुलिक मूल भाग) सँ सनकादि ऋषि सभक तर्पण एक-एक बेर जल दए करी ॐ सनकादय आगच्छन्तु (एहि मन्त्र से आवाहन करी)
ॐ सनकश्च सनन्दश्च तृतीयश्च सनातनः ।
कपिलश्च आसुरिश्चैव वोढुः पञ्चशिखस्तथा ।।
सर्वे ते तृप्तिमायान्तु मद् दत्तेनाऽम्बुना सदा ।।
ऋषि तर्पण-
पुनः पूर्व मुँह भय यज्ञोपवीत सव्य कय देव तीर्थ (अंगुली क अग्रभाग) सँ मरीचि आदि दस ऋषिक तर्पण एक-एक बेर जल दैत करी- ॐ मरीच्यादय आगच्छन्तु। आवहन करी । ॐ मरीचिः तृप्यताम् । ॐ अत्रिः तृप्यताम् । ॐ अङ्गिराः तृप्यताम् । ॐ पुलस्त्यः तृप्यताम् । ॐ पुलहस्तृप्यताम् । ॐ क्रतुः तृप्यताम् । ॐ प्रचेताः । ।। | तृप्यताम् । ॐ वशिष्ठः तृप्यताम् । ॐ भृगुः तृप्यताम् । ॐ नारदः तृप्यताम् । दिव्य पितृ तर्पण-दक्षिणाभिमुख आ अपसव्य भए भूमि पर रही त वाम जांघ के खसेने दक्षिणाय ते कुशा पर अथवा | सराय मे राखल जल मे जल में रही त ठाड़े तिल पितृतीर्थ (अंगुष्ठ आ तर्जनीकक मध्यक मूल भाग) से हाथ में | मोडा राखने तिलसहित अथवा विना तिलो के तीन-बेर जल दैत अग्निष्वात आदिक तर्पण करी। ॐ अग्निष्वात्तादय आगच्छन्तु। आवाहन करी। ॐ अग्निष्वत्तास्तृप्यन्ताम् इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः । ॐ सौम्याः तृप्यन्ताम् इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः । ॐ हविष्मन्तः तृप्यन्ताम् इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः । ॐ उष्मपाः तृप्यन्ताम् इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः । ॐ सुकालिनः तृप्यन्ताम् इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः। ॐ वर्हिषदः तृप्यन्ताम् इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः । ॐ आज्यपाः तृप्यन्ताम् इदं जलं तेभ्यः स्वधा नमः ।यम तर्पण
ऊपर में वर्णित विधि के अनुसार १४ यमक तर्पण करी । ॐ यमादय आगच्छन्तु। आवहन करी । ॐ यमाय नमः । ॐ धर्मराजाय नमः । ॐ मृत्यवे नमः । ॐ अन्तकाय नमः । ॐ वैवस्वताय नमः । ॐ कालाय नमः । ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः । ॐ औदुम्बराय नमः । ॐ दध्नाय नमः । ॐ नीलाय नमः । ॐ | परमेष्ठिने नमः । ॐ वृकोदराय नमः । ॐ चित्राय नमः । ॐ चित्रगुप्ताय नमः। तकर बाद ॐ चतुर्दशैते | यमाः स्वस्ति कुर्वन्तु तर्पिताः । ई वाक्य पढ़ी।पितृ-तर्पण-
(उपयुक्ते विधि सँ पितृ तर्पण करी। पुरुष पक्ष के ३-३ बेर आ मातृपक्ष के १-१ बेर तिलमिश्रित अथवा तिलरहित जल दी। तिलक अभाव मे “सतिलम्” नहि पढ़ी।) अगिला मन्त्र से सब पितरके तीन-तीन अञ्जलि जल दी. ॐ आगच्छन्तु मे पितर इमं गृहूणन्तु अपोऽञ्जलिम् । पितर के आवाहन क अगिला मन्त्रे तर्पण करी- ॐ अद्य अमुक गोत्रः (अपन गोत्र) पिता अमुक (पिताक नाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा (ई पढ़ि पहिल बेर जल दी)। तस्मै स्वधा। ( ई पढ़ि दोसर ( ई पढ़ि तेसर बेर जल दी) एहिना आगुओ सभ मे। ॐ अद्य अमुक गोत्रः (अपन गोत्र ) पितामहः अमुक (बाबा क नाम) शर्मा तृप्यतामिदं ते सतिलं जलं तस्मै स्वधा । ३ बेर ।। ॐ अद्य अमुक गोत्रः (अपन गोत्र) प्रपितामहः अमुक (प्रपितामहक नाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा । ३बेर अन्त मे “ॐ तृप्यध्वम्-3” ई वाक्य३ बेर पढ़ि जल दी ।। ॐ अद्य अमुक गोत्रः (नानाक गोत्र) मातामहः अमुक (नानाक नाम) शर्मा’ तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा ३ बेर ।। ॐ अद्य अमुक गोत्रः ( नाना क गोत्र ) प्रमातामहः अमुक ( परनानाक नाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा३ बेर ।। ॐ अद्य अमुक गोत्रः (नानाक गोत्र ) वृद्धप्रमातामहः अमुक (वृद्धप्रमातामहक नाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा । ।। अन्त मे ॐ तृप्यध्वम्- ई वाक्य ३ बेर उ पढ़ि जल दी ।। स्त्रीपक्ष में १-१ अंजलि जल दी- ॐ अद्य अमुक गोत्रा (अपन गोत्र) माता अमुकी (माताक नाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा १ बेर ।। ॐ अद्य अमुक (अपन गोत्र ) गोत्रा पितामही अमुकी (दादी क नाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा – १ । ॐ अद्य अमुक (अपन गोत्र ) गोत्रा प्रपितामही अमुकी ( पर दादी क नाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा – १ । अन्त मे “ॐ तृप्यध्वम्” ई वाक्य एक बेर पढ़ि जल दी ।। ॐ अद्य अमुकी (नानाक गोत्र ) गोत्रा मातामही अमुकी (नानी क (नाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा – १। ॐ अद्य अमुकी (नानाक गोत्र ) गोत्रा प्रमातामही अमुकी (पर नानी नाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा – १ । ॐ अद्य अमुकी ( नानाक गोत्र ) गोत्रा वृद्धप्रमातामही अमुकी (वृद्ध परनानी कनाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा – १ । अन्त मे “ॐ तृप्यध्वम्” ई वाक्य एक बेर पढ़ि जल दी ।। एहि तर्पणक बाद अपन अन्य समबन्धी लोकनि के गोत्र ओ नाम लय अपना रुचि अनुसारें तर्पण करी। तकर बाद आँजुर में जल लय अपन बन्धु अबन्धु एवं अन्य जन्मक बन्धु के जल दी-ॐ येऽबान्धवा बान्धवाश्च येऽन्यजन्मनि बान्धवाः ।
ते तृप्तिमखिला यान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवाञ्छति ।।
पुनः नीचाँ लीखल मंत्र पढ़ि स्नान कयल भिजलाहा कटिवस्त्रक (धाता) जल तेकुशा पर दक्षिण मुँहें मंत्र पढ़ि पितृ तीर्थ सँ गाड़ि अपना वंशक अतृप्त पित्र केँ दी-ॐ ये के चास्मत्कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृताः ।
ते गृह्णन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडनोदकम् ।।
एहि मंत्र वस्त्रक जल कुश पर गाड़ि पूर्व मुँह भय यज्ञोपवीत सव्य कय सूर्य के तीन बेर अर्घ दी- ॐ नमो विवस्वते ब्रह्मन् ! भास्वते विष्णुतेजसे । जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने ।। एषो अर्घः ॐ भगवते श्रीसूर्यनारायणाय नमः । ।१ ।। ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशे जगत्पते । अनुकम्पय माम् भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर ।। एष द्वितीयोऽर्घः ॐ भगवते श्रीसूर्यनारायणाय नमः ॥ २ ॥ ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन् नमृतं मत्र्त्यं च हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् । एष तृतीयोऽर्घः ॐ भगवते श्रीसूर्यनारायणाय नमः ॥ ३ ॥ अर्घक बाद हाथ में लाल फूल लय सूर्य के प्रणाम करी- ॐ जपा कुसुम संकाशं कास्य पेयं महाद्युतिम् । ध्वान्तारिं सर्व पापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् । इति वाजसनेयि तर्पण समाप्तिः
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