कुशी अमावश्याके कुश उखाड़वाक विधान छै! कुश उखाड़य काल लेल मन्त्र देल गेल अछि!
🌿 कुश उखाड़बाक मन्त्र तथा विधि 🌿
कुशमूले स्थितो ब्रह्मा कुशमध्ये जनार्दनः
कुशाग्रे शङ्करं विद्यात् कुशान् मे देहि मेदिनि ॥
इति भूमिं स्पृष्ट्वा
ॐ कुशोऽसि कुशपुत्रोऽसि ब्राह्मणा निर्मितः पुरा।
देवपितृहितार्थाय कुशमुत्पाटयाम्यहम् ॥
इत्युच्चार्य 'हुं फट्' कारेण दर्भान् समुद्धरेत् ॥
📖 मैथिली व्याख्या:
भादव कृष्ण पक्षक अमावास्या के "कुशी अमावस्या" कहल जाइत अछि। ओहि दिन कुश उखाड़ल जायब उचित मानल गेल अछि। तिथि तत्त्वचिन्तामणि आदि ग्रंथ अनुसार मरीचि ऋषिक कथन अछि — “मासे नभसि अमावास्या”। अर्थात, एहि दिन उखाड़ल कुश वर्ष भरि टटका मानल जायत अछि और धार्मिक कार्य में उपयोग योग्य होइत अछि।
कुश उखाड़ब एक धार्मिक विधि थीक। पवित्र स्थान पर पूब अथवा उत्तर दिसा मुख कय, दहिना हाथ में खुरपी लैत — “ॐ” कहि कुश धय, “ॐ विरिञ्चना सहोत्पन्न” इत्यादि पढ़िक’ कुशमूल स्पर्श करैत “ॐ कुशोऽसि कुशपुत्रोऽसि...” मंत्र पढ़िक’ 'हुं फट्' उच्चारण करैत कुश उखाड़ल जाए।
यद्यपि ‘नभः’ शब्द साओन मासक द्योतक होइत अछि, तथापि चंद्र मासक अनुसार शुक्लादिक गणनासँ श्रावण मासक अमावस्या
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