दहिन हाथ मे तेकुशा लए सव्य (वामस्कन्धस्थापित यज्ञोपवीती) भए वाम हाथ के दहिन हाथक नीचा भाग मे स्पर्श कयने भूमि पर रही तऽ पूब, उ...
दहिन हाथ मे तेकुशा लए सव्य
(वामस्कन्धस्थापित यज्ञोपवीती) भए वाम हाथ के दहिन हाथक नीचा भाग मे स्पर्श
कयने भूमि पर रही तऽ पूब, उत्तर अथवा ईशानकोणाभिमुख वैसि दहिना जांघ के
खसेने पवित्र भूमि पर राखल तकुशा पर अथवा एक टा सराय मे राखल जल में (ओहि
जल मे विना तेकुशा राखने), यदि जल मे ठाढ़ रही तऽ पूर्वाभिमुख भए देवतीर्थ
(अंगुलिसभक अग्रभाग) सँ पहिने देवतर्पण करी। यथा परिस्थिति तेकुशा पर अथवा
जल में तीन बेर जल दैत पढ़ी-
ॐ देवास्तृप्यन्ताम् । तकर बाद
उत्तराभिमुख आ नीवीती (यज्ञोपवीत के कण्ठावलम्बित कए) भए कायतीर्थ (कनिष्ठा
आंगुलिक मूल भाग) सँ नीचा लिखल मन्त्र सँ ऋषि तर्पण तीन बेर जल दैत करी – ॐ ऋषयस्तृप्यन्ताम् । पुनः पूर्वाभिमुख भए प्रजापत्य तीर्थ (कनिष्ठा अंगुलीक मूल भाग) सँ नीचा लिखल मन्त्र सँ प्रजापति तर्पण एक बेर जल देत करी-ॐ प्रजापतिस्तृप्यन्ताम् ।
दक्षिणाभिमुख आ अपसव्य भए भूमि पर रही तऽ वाम जांघ के खसेने दक्षिणाग्र
तेकुशा पर अथवा सराय मे राखल जल में, जल मे रही तऽ ठाढ़े तिल लए पितृतीर्थ
(अंगुष्ठ आ तर्जनीकक मध्य मूल भाग) सँ हाथ मे मोड़ा राखने तिलसहित अथवा
विना तिलो पुरुष पक्ष के ३-३ बेर आ मातृपक्ष के १-१ बेर तिलमिश्रित अथवा
तिलरहित जल दी। तिलक अभाव मे “सतिलम्” नहि पढ़ी।)
अगिला मन्त्र सँ सब पितरकें तीन-तीन अञ्जलि जल दी ॐ आगच्छन्तु में पितर इमं गृहूणन्तु अपो ऽञ्जलिम् ।
पितर के आवाहन क अगिला मन्त्रे तर्पण करी-
ॐ अद्य अमुक गोत्रः(गोत्र) पिता अमुक (
पिताक नाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा ( ई पढ़ि पहिल बेर जल
दी)। तस्मै स्वधा । ( ई पढ़ि दोसर बेर जल दी), पुनः तस्मै स्वधा। (ई पढ़ि
तेसर बेर जल दी) एहिना आगओ सभ मे। ॐ अद्य अमुक गोत्र : ( अपन गोत्र )
पितामहः अमुक (बाबा क नाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा । ३
बेर ।। ॐ अद्य अमुक गोत्रः ( अपन गोत्र ) प्रपितामहः अमुक (प्रपितामहक नाम)
शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा । ३बेर ।। अन्त मे “ॐ
तृप्यध्वम्-३” ई वाक्य३ बेर पढ़ि जल दी ।।
ॐ अद्य अमुक गोत्रः ( नानाक गोत्र ) मातामहः अमुक (नानाक नाम) शर्मा
तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा ३ बेर ।। ॐ अद्य अमुक गोत्रः ( नाना क
गोत्र ) प्रमातामहः अमुक ( परनानाक नाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै
स्वधा३ बेर ।। ॐ अद्य अमुक गोत्र : ( नानाक गोत्र ) वृद्धप्रमातामहः अमुक
(वृद्धप्रमातामहक नाम) शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा । । अन्त
मे ॐ तृप्यध्वम् ई वाक्य ३ बेर पढ़ि जल दी ।।
स्त्रीपक्ष में 1-1 अंजलि जल दी-
ॐ अद्य अमुकी गोत्रा (अपन गोत्र ) माता अमुकी ((माताक नाम) देवी
तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा १ बेर ।। ॐ अद्य अमुक (गोत्र) गोत्रा
पितामही अमुकी (दादी क नाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा १ । ॐ
अद्य अमुक (गोत्र) गोत्रा प्रपितामही अमुकी ( पर दादी क नाम) देवी
तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा- १। अन्त मे “ ॐ तृप्यध्वम्” ई वाक्य एक
बेर पढ़ि जल दी ।।
ॐ अद्य अमुकी (नानाक गोत्र ) गोत्रा मातामही अमुकी (नानी के नाम ) देवी
तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा – १। ॐ अद्य अमुकी (नानाक गोत्र)गोत्रा
प्रमातामही अमुकी (पर नानी नाम) देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वथा-
१। ॐ अद्य अमुकी (गोत्र)गोत्रा वृद्धप्रमातामही अमुकी (वृद्ध परनानी
कनाम)देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा – १। अन्त मे “ॐ तृप्यध्वम्” ई
वाक्य एक बेर पढ़ि जल दी ।।
एहि तर्पणक बाद अपन अन्य समबन्धी लोकनि केँ गोत्र ओ नाम लय अपना रुचि
अनुसारें तर्पण करी।। तकर बाद आँजुर में जल लय अपन बन्धु अबन्धु एवं अन्य
जन्मक बन्धु के जल दी-
ॐ येऽबान्धवा बान्धवाश्च येऽन्यजन्मनि बान्धवाः । ते तृप्तिमखिला यान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवाञ्छति ।।
पुनः नीचाँ लीखल मंत्र पढ़ि स्नान कयल भिजलाहा कटिवस्त्रक (धोती) जल तेकुशा
पर दक्षिण मुँहें मंत्र पढ़ि पितृ तीर्थ सँ गाडि अपना वंशक अतृप्त पित्र
के दी-
ॐ ये के चास्मत्कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृताः । ते गृह्णन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडनोदकम् ।।
एहि मंत्र वस्त्रक जल कुश पर गाड़ि पूर्व मुँह भय यज्ञोपवीत सव्य कय सूर्य के तीन बेर अर्घ दी-
ॐ नमो विवस्वते ब्रह्मन् ! भास्वते विष्णुतेजसे । जगत्सवित्रे शुचये
सवित्रे कर्मदायिने ।। एषोऽर्घः ॐ भगवते श्रीसूर्यनारायणाय नमः ।।१।।
ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशे जगत्पते । अनुकम्पय माम् भक्त्या
गृहाणार्घ्यं दिवाकर।। एष द्वितीयोऽर्घः ॐ भगवते श्रीसूर्यनारायणाय नमः ।।२
।।
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्त्तमानो निवेशयन् नमृतं मर्त्यं च हिरण्ययेन सविता
रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ।। एष तृतीयो ऽर्घः ॐ भगवते
श्रीसूर्यनारायणाय नमः ।।३ ॥
अर्घक बाद हाथ में लाल फूल लय सूर्य क प्रणाम करी-
ॐ जपा कुसुम संकाशं कास्य पेयं महाद्युतिम् । ध्वान्तारिं सर्व पापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
इति छन्दोगानां तर्पण समाप्तिः
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