स्नान कए शुद्ध वस्त्र पहिरि पवित्र आसन पर सुविधानुसार पूर्वाभिमुख उत्तराभिमुख वा ईशान कोणाभिमुख (पूर्वोत्तर कोणाभिमुख) बैसि चानन कए दहि...
स्नान कए शुद्ध वस्त्र पहिरि पवित्र आसन पर सुविधानुसार पूर्वाभिमुख उत्तराभिमुख वा ईशान कोणाभिमुख (पूर्वोत्तर कोणाभिमुख) बैसि चानन कए दहिन हाथक अनामिका आंगुर मे कुशक पवित्र, सोना अथवा चाँदीक अंगूठी पहिरि हाथ मे तेकुशा ग्रहण कए आ जल लए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ि आचमन करी
1. ॐ केशवाय नमः, 2. ॐ नारायणाय नमः, 3. ॐ माधवाय नमः । हाथ धोली ॐ गोविन्दाय नमः, ॐ हृषीकेशाय नमः । विनियोग मन्त्र-जल लय- ॐ अपवित्रः पवित्रो वेत्यस्य वामदेव ऋषिः, विष्णुर्देवता, गायत्रीच्छन्दः हृदि पवित्रकरणे विनियोगः । पुनः हाथ में जल लय अपन शरीरके सिक्त करी – ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थाङ् गतोऽपिवा । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सबाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।। ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु, गंगा विष्णुः हरिर्हरिः।
अपना ऊपर जल सँ सिक्त कय सभ वस्तु के सिक्त करी । तकर बाद दहिन हाथक अनामिका आँगुर में कुशक पवित्री (अंगुठी) धारण करी- ॐ पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ सवितुर्वेः प्रसव उत्पुनाम्य छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभिः तस्य ते पवित्रपते पवित्र पूतस्य यत्कामः पुने तच्छकेयम् ।। पुनः जल लय आसन के सिक्त करी ( आसन पर छींटी)- ॐ पृथ्वीति मन्त्रस्य मेरु पृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसनोपवेशने विनियोगः ।
दहिन हाथ सँ आसन स्पर्श कय मन्त्र पढ़ि आसन पवित्र करी- ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवित्वं विष्णुना धृता । त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ॥
शिखा स्पर्श करी–चिद्रूपिणि ! महामाये! दिव्यतेजः समन्विते।तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे ।।
चन्दन करी– ॐ चन्दनं वन्दयते नित्यं पवित्रं पाप नाशनम् आपदं हरते नित्यं लक्ष्मीर्वसतु सर्वदा ।
तकर बाद कुश आ जल लय सन्ध्याक संकल्प करी –ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ॐ अद्य उत्पात्तदुरितक्षयपूर्वक- श्रीपरमेश्वर – प्रीत्यर्थं संध्योपासनं करिष्ये ।
जल लय – अघमर्षण सूक्तस्याघमर्षण ऋषि रनुष्टुप् छन्दो भाववृत्तो देवता अश्व मेधाऽवभृथे विनियोगः ।
ॐ ऋतञ्च सत्यञ्चाभीद्धात्तपसोध्यजायत। ततोरात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः ।। समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत । अहोरात्राणि विदधाद्वश्वस्य मिषतो वशी। सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् ।। दिवञ्च पृथिवीञ्चान्तरिक्षमथो स्वः ।। एहि मन्त्रे जल के अभिमन्त्रित ए ओहि जल सँ तीन बेर आचमन करी ।
तदुत्तर बाद निम्न मन्त्रे जल के अभिमन्त्रित कए रक्षा हेतु ओहि जल सँ देह केँ दहिना सँ पाछू दिश दए वेष्टित करी– ॐ आपो मामभिरक्षन्तु ।। – – प्राणायाम सँ पूर्व ऋष्यादिक स्मरण करी ॐ कारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्रीच्छन्दोऽग्निर्देवता शुक्लो वर्णः सर्वकर्मारम्भे विनियोगः ।
सप्तव्याहृतीनां प्रजापतिर्ऋषिः गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्वृहती- पङ्क्तिस्त्रिष्टुब्जगत्यश्छन्दांस्यग्निवाय्वादित्य बृहस्पतिवरुणेन्द्र- विश्वेदेवा देवता अनादिष्ट प्रायश्चित्ते प्राणायामे विनियोगः ।
गायत्र्या विश्वामित्रऋषिर्गायत्रीछन्दः सविता देवता प्राणायामे विनियोगः । शिरसः प्रजापतिर्ऋषिर्ब्रह्माग्नि-वायुसूर्यो देवताः यजुः प्राणायामे विनियोगः ।
ई
विनियोग पढ़त ऋष्यादि स्मरण कय आसन स्थिर कय आँखि मूनि मौन भय अगिला
मन्त्र तीन-तीन बेर अथवा एक-एक बेर पढैत पूरक, कुम्भक आ रेचक नामक प्रणायाम
करी-
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ॐ। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम् ।
1. दहिना हाथक अँगूठा सँ नाकक दहिन पूड़ा बन्दकय वाम पूड़ा सँ वायु ग्रहण करैत नाभिमे श्यामवर्ण चतुर्भुज विष्णुक ध्यान करैत पूरक नामक प्राणायाम करी ।
2. द्वितीय अनामिका आंगुर सँ वाम पूड़ा के दाबि दीर्घकालधरि वायुके धारण कनै हृदयसँ कमलासनस्थ रक्तवर्ण चतुर्भुज ब्रह्माक ध्यान करैत कुम्भक नामक प्राणायाम करी ।
3. तृतीय दहिन पुड़ा सँ अंगूठा छोड़य शनैः शनैः वायु छोड़ैत, ललाटमे शुक्लवर्ण त्रिनेत्र शिवक ध्यान करैत रेचक नामक प्राणायाम करी।
प्रातः कालीन सन्ध्याक समय- जल लय– सूर्य्यश्चमेति ब्रह्माऋषिः प्रकृतिश्छन्दः सूर्य्यो देवता प्रातराचमने विनियोगः ।
सूर्य्यश्च मामन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृतेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्ताम् । यद्रात्र्या पापमकार्षं मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भ्यामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदवलुम्पतु । यत्किञ्चद्दुरितं मयि इदमहमापोऽमृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ।। एहि मन्त्रे प्रातः कालमे आचमन करी।
तदुत्तर वाम हाथ मे जल लए विनियोग वाक्य पढ़ि दहिन हाथक अंगुष्ठ आ अनामिका आंगुर सँ एक-एक मन्त्र पढेत कुल सात मन्त्र सँ सात बेर माथ पर जल प्रक्षेप करी- ॐ आपो हिष्ठेत्यादित्र्यृचस्य सिन्धुद्वीप ऋषिर्गायत्री छन्दः आपो देवता मार्जने विनियोगः ।
1. ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवः। 2.ॐ ता न ऊर्जे दधातन। 3. ॐ महे रणाय चक्षसे। 4. ॐ यो वः शिवतमो रसः । 5. ॐ तस्य भाजयतेह नः । 6. ॐ उशतीरिव मातरः । 7. ॐ तस्मा अरं गमाम वः । 8. ॐ सूर्य यस्य क्षयाय जिन्वथ । ९. ॐ आपो जनयथा च नः । तदुत्तर दहिन हाथ में जल लए एक बेर विनियोग वाक्य आ तीन बेर “द्रुपदादिव” इत्यादि मन्त्र पढ़ि ओहि अभिमन्त्रित जल के देह पर सिक्त करी –
द्रुपदादिवेत्यस्य कोकिलो राजपुत्र ऋषिरनुष्टुप् छन्दः आपो देवताः सौत्रामण्यवभृथे विनियोगः ।
मन्त्रः- ॐ द्रुपदादिव मुमुचानः स्विन्नः स्नातो मलादिव । पूतं पवित्रेणेवाज्यमापः शुन्धन्तु मैनसः ।
तदुत्तर दहिन हाथक तरहत्थी मे जल लए नाक मे जलक स्पर्श करैत श्वास धारण कएने निम्नलिखित मन्त्र पढ़लाक बाद ओहि जल केँ अपन वाम भाग मे विना देखने नीचा खसा दी- ॐ अघमर्षण-सूक्तस्याघमर्षण ऋषिरनुष्टुप् छन्दो भाववृत्तो देवता अश्वमेधाऽवभृथे विनियोगः ।
ॐ ऋतं च सत्यं चाभीद्धात्तपसोऽध्यजायत। ततो रात्र्यजायत। ततः समुद्रो अर्णवः । समुद्रादर्णवादधि संवत्सरो अजायत । अहोरात्राणि विदधद्विश्वस्य मिषतो वशी। सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथा पूर्वमकल्पयत्। दिवं च पृथिवीं चाऽन्तरिक्षमथो स्वः ।।
तदुत्तर दहिन हाथ मे जल लए निम्नलिखित मन्त्र पढ़ि ओहि जल से आचमन करी– ॐ अन्तश्चरसीति तिरश्चीन ऋषिरनुष्टुप छन्दः आपो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः ।
ॐ अन्तश्चरसि भूतेषु गुहायां विश्वतोमुखः ।
त्वं यज्ञस्त्वं वषट्कार आपो ज्योती रसोऽमृतम् ।।
तदुत्तर सूर्यसम्मुख ठाड़ भए अगिला मन्त्रे अर्घ्य दी– ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात् । एहि मन्त्र सँ सूर्य के अर्घ्य प्रदान कए प्रातः आ सायं काल में बद्धान्जलि भए आ मध्याहून काल मे ऊर्ध्वबाहु भए निम्नलिखित मन्त्र से सूर्योपस्थान करी- • ॐ उद्वयमिति हिरण्यस्तूप ऋषिरनुष्टुप् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
ॐ उद्वयं तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरम् ।
देवं देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् ।
•उदुत्यमित्यस्य प्रस्कण्व ऋषिर्गायत्री छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
ॐ उदुत्यञ्जातवेदसं देवव्वहन्ति केतवः दृशे व्विश्वाय सूर्यम् ।। चित्रमिति कौत्स ऋषिस्त्रिष्टुप्छन्दः सूर्यो देवतां विनि सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
• ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकञ्चक्षुर्मित्रस्य वरुणस्याऽग्नेः । आप्रा द्यावापृथिवी अन्तरिक्ष ग्वं सूर्य आत्मा नम जगतस्तस्थुषश्च ।
• ॐ तच्चक्षुरिति दध्यङ्ङाथर्वण ऋषिरक्षरातीत- पुर उष्णिक् छन्दः सूर्यो देवता सूर्योपस्थाने विनियोगः ।
• ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमुच्चरत्। पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतमदीनाः स्याम | शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात् ।
• गायत्री जप विधि :-
षडङ्गन्यासः–गायत्री मन्त्र जपसँ पूर्व षडङ्गन्यास करवाक विधान अछि। अतः आगु लिखल एक-एक मन्त्र उच्चारण करैत नीचा देल क्रमशः हृदयादि अंगक स्पर्श करी । १.ॐ हृदयाय नमः। २. ॐ भूः शिरसे स्वाहा ३. ॐ भुवः शिखायै वषट् । ४. ॐ स्वः कवचाय हुम्। ५. ॐ भूर्भुवः स्वः नेत्रत्रायाय वौषट् ६. ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट् ।
तदनन्तर कलजोड़ि ई विनियोग वाक्य पढ़ी–
ॐ कारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्रीच्छन्दः अग्निदेवता सर्वकर्मारम्भे विनियोगः ।
व्याहृति मन्त्रस्य प्रजापति ऋषिर्गायत्री उष्णिग् अनुष्टुभश्छन्दांस्यग्नि वाय्वादित्या देवता जपे विनियोगः । गायत्र्या विश्वामित्र ऋषिर्गायत्रीच्छन्दः सविता देवता जपे विनियोगः ।
एतदुत्तर कलजोड़ि गायत्रीक ध्यानमन्त्र पढ़ी-
ॐ श्वेतवर्णा समुद्दिष्टा कौशेयवसना तथा ।
श्वेतैर्विलेपनैः पुष्पैरलङ्कारैश्च शोभिता ।।
आदित्यमण्डलान्तस्था ब्रह्मलोकगताऽथवा ।
अक्षसूत्रधरा देवी पद्मासनगता शुभा ।।
अगिला मन्त्रे गायत्रीक विनियोग तदुत्तर आवाहन करी तेजोऽसीति | देवा ऋषयः शुकं दैवतं गायत्रीच्छन्दो गायत्र्यावाहने विनियोगः ।
ॐ तेजसि शुक्रमस्य मृतमसि धामनामासि प्रियं देवानामनाधृष्टं देवयजनमसि ।। आवाहन कऽ निम्नलिखित विनियोग पढ़ी अगिला मन्त्रे प्रणाम करी– परोरजस इति विमल ऋषिरनुष्टुप् छन्दः परमात्मा देवता गायत्र्युपस्थापने विनियोगः । ॐ गायत्र्यस्यैकपदी द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यपदसि नहि पद्यसे। नमस्ते तुरीयाय दर्शताय पदाय परोरजसे सावदो मा प्रापत्
ॐ आगच्छ वरदे देवि त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनि ।
गायत्रीच्छन्दसां मातर्जपे मे सन्निधीभव ||
तदुत्तर न्यूनतम १० बेर अथवा यथासाध्य १०८ बेर गायत्री मन्त्र जपी-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ ।।
तदनन्तर एहि मन्त्र सँ कलजोड़ि भगवती गायत्री के जप समर्पित करी– ॐ गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् । सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्वरि ।।
तदनन्तर अर्घा में जल लए ओहि जल से अगिला मन्त्रे गायत्री देवीक विसर्जन करी ॐ उत्तरे शिखरे जाते भूम्यां पर्वतवासिनि । ब्रह्मणा समनुज्ञाते गच्छ देवि यथासुखम् ।।
तदनन्तर अर्घा वा हाथ मे जल लए अगिला मन्त्रे सूर्य के अर्घ्य दए प्रणाम करी- ॐ नमो विवस्वते ब्रह्मन् ! भास्वते विष्णुतेजसे । जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने ।। एषोऽर्घः ॐ भगवते श्रीसूर्याय नमः ।
तदुत्तर सूर्य के प्रणाम करी-
ॐ जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम् ।
ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ।।
।। इति सन्ध्या बन्धन विधि ।।
नोट- तर्पणाधिकारी व्यक्ति तर्पण कय सूर्य के अर्घ्य देथि
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