अथ नरक निवारण चतुर्दशी व्रत पूजा विधिः

संस्कृत तथा मैथिलीमे नरक निवारण चतुर्दशी व्रतक पूजा विधि एतय देल गेल अछि। इ पूजा विधि वर्षकृत्यम सँ लेल गेल अछि!

 


माघकृष्ण चतुर्दशी (१४) नरक निवारण चतुर्दशी । तत्र प्रदोषे कृतं नित्यक्रियो व्रती शुद्धासने उपविश्य मृन्मयीं महेश | प्रतिमां विधाय गणपत्यादिपञ्चदेवतां विष्णुं च सम्पूज्य कुश- त्रयतिल जलान्यादाय

माघ कृष्णपक्ष क चतुर्दशी नरक चतुर्दशी कहवैछ । ताहिमे | प्रदोष समय व्रती नित्य क्रिया कय शुद्ध आसन पर वैसि, माटिक शिवक मूर्ति बनाय गणपत्यादि पञ्चदेवता तथा विष्णुक पूजा कऽ कुशतिल जल लय

ॐ अद्य माघे मासि कृष्ण पक्षे चतुर्दश्यां तिथौ अमुक-गोत्राय सपरिवारस्य मम श्रीमद् अमुकशर्मणः सकलदुरितोपसर्गापच्छान्तिपूर्वकाश्वमेधयज्ञफल- समफल प्राप्ति कामः श्रीमहेश्वरप्रीत्यर्थं नरकनिवारणचतुर्दशीव्रत पूजामहं करिष्ये ।।

इति संकल्प्य 'ॐ मनो जूतिः' रिति मंत्र पठित्वा ई. संकल्प कऽ अक्षत लऽ 'ॐ मनोजूतिः' इत्यादि मन्त्र पढ़ि

ॐ भूर्भुवः स्वः श्रीगौरीशङ्कराविहागच्छतमिह तिष्ठतम् ।


इत्यावाह्य - एहि वाक्यें आवाहन का फूल अक्षत चानन सँ

ॐ हराय नमः, ॐ महेश्वराय नमः, ॐ शम्भवे नमः, ॐ शूलपाणये नमः, ॐ पिनाकधृजे नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ पशुपतये नमः, ॐ महादेवाय नमः ॥


इति पुष्पाक्षतं समर्प्य ध्यायेत् –  पूजा कड फूल लड हाथ जोड़ि ध्यान करथि–

ॐ ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं, रत्नाकल्पोज्ज्वलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्। पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृतिंवसानं, विश्वाद्यं विश्ववन्द्यं निखिल भयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम् ॥


इति ध्यान पुष्पं समर्प्य, पुष्पासनमादाय 

ई ध्यान कय फूल चढ़ाय। आसन हेतु फूल लय

ॐ देवदेव नमस्तुभ्यं सहस्रशिरसे नमः । 

नमस्ते कृत्तिवासाय स्वासनं प्रतिगृह्यताम् ॥

 इदमासनम् ॐ गौरीशङ्कराभ्यां नमः ॥


ततः पाद्यम्- तखन पैर धोएवाक जल लऽ- 

शम्भो गङ्गादितीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाहृतम्। 

तोयमेतत्सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

इदं पाद्यम् ॐ गौरीशङ्कराभ्यां नमः ॥ 

इदमर्घ्यम्, ॐ गौरीशङ्कराभ्यां नमः ॥


आचमनीयम्- आचमन हेतु आचमनी मे जल लड- 

ॐ पाटलोशीरकर्पूरसुरभि स्वादुशीतलम् । 

तोयमाचमनीयार्थ शङ्कर प्रतिगृह्यताम् ॥ 

इदमाचमनीयम् ० ।


स्नानीय जलमादाय - स्नान हेतु जल लय- 

ॐ मन्दाकिन्याः समानीतं हेमाम्भोरुहवासितम्। 

स्नानीयं ते मया भक्त्या नीरं स्वीक्रियताम् प्रभो ॥ 

इदं स्नानीयम्, ॐ गौरीशङ्कराभ्यां नमः ।


पञ्चामृतम् - मिलाएल दूध, दही, घी, चीनी, मधु लऽ - 

ॐ पयोदधिघृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्। 

पञ्चामृतेन स्नपनं  प्रीत्यर्थं प्रतिगृह्यताम्॥

इदं पञ्चामृतस्नानीयम् ० ।


शुद्धोदकम्- शुद्ध तीर्थ क वा गङ्गाजल लय 

ॐ किरणाधूतपापा च पुण्यतोया सरस्वती । 

मणिकर्णीजलं शुद्धं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

इदं स्नानीयम् इदं पुनराचमनीयम् ० ।


वस्त्रम् - श्वेत वस्त्र लय 

सूक्ष्मतन्तुसमाकीर्णनानावर्णविचित्रितम् । 

वस्त्रं गृहाण मे देव प्रीत्यर्थं तव निर्मितम् ।। 

इदं वस्त्रम्, बृहस्पतिदैवतम् ० । 


यज्ञोपवीतम्  जनौ लय

ॐ महादेव नमस्तेऽस्तु त्राहि मां भवसागरात् । 

ब्रह्मसूत्रं सोत्तरीय गृहाण परमेश्वर ॥ 

इमे यज्ञोपवीते बृहस्पतिदैवते ० । 

इदमाचमनीयम् ०


चन्दनम् – श्रीखण्ड चानन लय 

ॐ मलयाचलसम्भूतं घनसार- मनोहरम् । 

हृदयानन्दनं चारु चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

इदं श्रीखण्डचन्दनम् ० ।


अक्षताः  अक्षत लय

ॐ अखण्डानक्षतान् शुक्लान् शोभनान् शालि तण्डुलान् । 

त्राहि मां सर्वपापेभ्यो गृहाण वृषभध्वज ॥

इदमक्षतम् ०।


पुष्पाणि फूल लय

ॐ शोभनानि सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो । 

मयाहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

एतानि पुष्पाणि ० ।


विल्वपत्राणि  विल्वपत्र लय

ॐ त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रस्य सदाप्रियम् । 

विल्वपत्रं प्रयच्छामि त्र्यम्बकाय नमोऽस्तु ते॥ 

एतानि विल्वपत्राणि ० ।


अथाऽङ्गपूजा- तखन फूल चानन अक्षत से अङ्ग पूजा करथि

ॐ विश्वपतये नमः पादौ पूजयामि। ॐ शिवाय नमः, जानुनी पूजयामि । ॐ शूलपाणये नमः, गुल्फी पूजयामि । ॐ शम्भवे नमः, कटिं पूजयामि । ॐ स्वयम्भुवे नमः, गुह्यं पूजयामि । ॐ महादेवाय नमः, नाभिं पूजयामि। ॐ विश्वकर्मणे नमः, उदरं पूजयामि । ॐ सर्वतोमुखाय नमः, पार्श्वों पूजयामि। ॐ स्थाणवे नमः, स्तनौ पूजयामि । ॐ नीलकण्ठाय नमः, कण्ठं पूजयामि । ॐ श्रीकण्ठाय नमः, मुखं पूजयामि । ॐ शशिभूषणाय नमः, मुकुटं पूजयामि । ॐ देवाधिदेवाय नमः, सर्वाङ्गं पूजयामि ॥


ततो धूपः  तखन धूप लय 

ॐ वनस्पतिरसो दिव्यो गन्धाढ्यः सुमनोहरः । 

आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

एष धूपः गौरीशंकराभ्यां नमः । 


दीपमादाय - दीप लय

ॐ कापस घृत संयुक्तं वह्निना योजितं मया। 

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्य-तिमिरापहम् ॥ 

एष दीपः ० ।


नैवेद्यम् - नाना प्रकार के नैवेद्य लऽ 

ॐ अन्नं चतुर्विधं स्वादु रसैः षड्भिः समन्वितम् ।

भक्ष्यभोज्यसमायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥

 इदं नैवेद्यम् । इदं पानीयं जलम् । इदमाचमनीयम् ० 


करोद्वर्तनगन्धम्- सुगन्धित फूल चानन कर्पूर लय- 

ॐ मलयाचलसम्भूतं कर्पूरेण समन्वितम् । 

करोद्वर्तनकं चारु गृह्यतां जगतः पते ।।

 इदं करोद्वर्तनम्, ॐ गौरी ० ।


ताम्बूलमादाय - पान सुपारी लय- 

ॐ पूगीफलसमायुक्तं नागवल्लीदलैर्युतम् । 

कर्पूरादिसमायुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ॥ 

इदं ताम्बूलम्० । इदं पुष्पमाल्यम्० । 


दक्षिणाद्रव्यम्- एहि मन्त्र दक्षिणा चढ़ावथि।

ॐ हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।

अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥

इदं दक्षिणाद्रव्यम् ०


आरार्तिकम् - अनेक मुख दीप तथा कर्पूर जराय 

ॐ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव । 

त्वमेवसर्वज्योतींष्यारार्तिक्य प्रतिगृह्यताम् ॥ 

इदमारार्तिकं । इदमाचमनीयम् ० ।


प्रदक्षिणा- तखन अगिला मन्त्र पढ़ेत प्रदक्षिण करथि - 

ॐ यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यासमानि च। 

तानि तानि प्रणश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे ॥ 

एतानि प्रदक्षिणा ० ।


नमस्कारा: – तखन अगिला मन्त्र प्रणाम करथि 

ॐ नमः शिवाय शान्ताय पञ्चवक्त्राय शूलिने । 

नन्दि भृङ्गिमहाकालगणयुक्ताय शम्भवे ।। न

मस्तेसर्वदीपात्मन् निमेष- त्रुटि सम्भव । 

जन्ममृत्यु- जराव्याधि संसारभयनाशन ।।


नमस्ते देवदेवेश नमस्ते धरणीधर ।

नमस्ते विश्वरूपाय नमस्ते पुरुषोत्तम ।।

 संसारार्णव-मग्नं च त्राहि मां वृषभध्वज

हराय च नमस्तुभ्यं त्रैलोक्य व्यापिने नमः।।


 इति ततः कथां श्रुत्वा विसर्जनं कुर्यात्

एहि मन्त्र सँ प्रणाम कऽ कथा सुनि विसर्जन करथि -


अथ विसर्जनम्

ॐ गौरीशंकरौ पूजितौ स्थः क्षमेयाथां स्वस्थानं गच्छतम् ।


इति विसृज्य कुशत्रयतिलजलान्यादाय 

एहि वाक्य सँ विसर्जन कऽकुश दिल जल लय–


ॐ अद्य कृतैतन्नरक-निवारण- चतुर्दशीव्रतपूजनतत्कथा नमः ॥ श्रवणकर्मप्रतिष्ठार्थमेतावद्रव्यमूल्यकहिरण्यमग्निदैवतं यथानाम गोत्राय ब्राह्मणाय दक्षिणामहं ददे। 


इति ब्राह्मणाय प्रतिपादयेत्

ई कहि ब्राह्मण के दक्षिणा दय आशीर्वाद ग्रहण करथि ।

टिपण्णी सभ

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Maithili Patra (मैथिली पतरा): अथ नरक निवारण चतुर्दशी व्रत पूजा विधिः
अथ नरक निवारण चतुर्दशी व्रत पूजा विधिः
संस्कृत तथा मैथिलीमे नरक निवारण चतुर्दशी व्रतक पूजा विधि एतय देल गेल अछि। इ पूजा विधि वर्षकृत्यम सँ लेल गेल अछि!
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