पितृपक्ष तर्पण विधान देवताक तर्पण सँ देवऋण, ऋषि तर्पण सँ ऋषिऋण आओर पितृ तर्पण सँ पितृऋण सँ मुक्ति भेटैछ। देव कार्यमे सब्य अर्थात बायाँ कन्ह...
पितृपक्ष तर्पण विधान
देवताक तर्पण सँ देवऋण, ऋषि तर्पण सँ ऋषिऋण आओर पितृ तर्पण सँ पितृऋण सँ मुक्ति भेटैछ।
देव कार्यमे सब्य अर्थात बायाँ कन्हा पर जहिना जनेऊ पहिरैत छी। ऋषि काजमे मालाकार जहिना माला पहिरैत छी आओर पितृक काजमे अपसब्य अर्थात दायाँ कन्हा पर ऊल्टा जनेऊ धारण करी। देव आओर ऋषि कार्य पूब मुँहे, पितृ कर्म दक्षिण मुँहे किएक तँ यमलोक दक्षिणे दिशामे छैक आओर पितृक वास ओहि दिशा होयत अछि।
स्नान ध्यान कय आसन लगा सोना चाँदी ताम्बा अथवा काँसाक वर्तन आगूमे राखि कोनो पात्रमे कारी तील लय, कुशक एकटा आसन तरमे दोसरक विरणी बना मध्यमा आओर अनामिकामे राखि तेसरक दायाँ हाथक अनामिकामे पवित्री बना पहिरि, सोनो चानीक पवित्री पहिर सकै छी एकटा कुशक मोड़ा बना जाहि सँ पितृके तर्पण होइछ। एकटा कुशक तेकूशा बना अथवा ओहिना कुश लय शंखमे जल श्वेत फूल अक्षत फल द्रव्य लय दक्षिण मुँहे अगस्त्य तर्पण इ मंत्र सँ करी-
आगच्छ मुनिशार्दूल ! तेजोराशे ! जगत्पते !।
सोदके पूरिते कुम्भे आसनं सफलं कुरु ।।
एहि मन्त्रेँ आवहन करू।
ॐ काशपुष्पप्रतीकाश ! अग्निमारुतसम्भव !।
मित्रावरुणयोः पुत्र ! कुम्भयोने ! नमोऽस्तु ते।।
एषोऽर्घः अगस्त्याय नमः।
ॐ कुम्भयोनिसमुत्पन्न! मुनीनां मुनिसत्तम्!।
उदयन्ते लंका द्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
पुनः शंखमे सब वस्तु लय-
ॐ शंखं पुष्पं फलं तोयं रत्नानि विविधानि च।
उदयन्ते लङ्काद्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
तखन काशक फूल लय-
ॐ काश पुष्प प्रतीकाश बह्निमारूत सम्भव।
उदयन्ते लङ्काद्वारे अर्घोऽयं प्रतिगृह्यताम्।।
तकर बाद कल जोरी इ मंत्र पढि प्रर्थना करी-
ॐ आतापी भक्षितो येन वातापी च महावल:।
समुद्र: शोषितो येन स मेऽगस्त्य: प्रसीदतु।।
ओकर बाद पुनः शंखमे सब किछु लय अगस्ति पत्नीक इ मंत्र पढि तर्पण करी-
ॐ लोपामुद्रे महाभागो राजपुत्रि पतिव्रते।
गृह्यणर्घ्यम्मया दत्तं मित्रवारूणि बल्लभे।।
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वाजसनेयि तर्पण विधान
ओहिना कुश सब रखने रहि आओर पूब मुँहे सब अंगूरीके अग्रभाग जकरा देवतीर्थ कहल जाइछ जल आओर श्वेत अथवा कोनो तील लय इ मंत्र पढैत तर्पण करी-
देव तर्पण
ॐतर्पणीया देवा आगच्छन्तु।
ॐ ब्रह्मास्तृप्यताम्।
ॐ विष्णुस्तृप्यताम्।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम्।
ॐ देवायक्षास्तथा नागा गन्धर्वाप्सरसोऽसुरा:।
क्रूरा: सर्प्पा: सुपर्णास्च तरवो जम्भका: खगा: विद्याधारा जलाधारास्तथैवाकाश गामिन:।निराधाराश्च ये जीवा: पापे धर्मे रताश्चये तेषामाप्यायनायै तद्दीयते सलिलम्मया।।
आब उत्तर मुँहे जनेऊके मालाकार कय इ मंत्र पढि तर्पण करी –
ॐ सनकादय आगच्छन्तु।
ॐ सनकश्चसनन्दश्च सनातन:।
कपिलश्चासुरिश्चैव वोढु:पञ्चशिखस्तथा सर्वे ते तृप्तिमायान्तु मद्दत्तेनाम्बुना सदा।
ऋषि तर्पण
पूर्व मुँहे जनेऊ मालाकार राखि कूशक मध्य भाग देवतीर्थ सँ अहि मंत्र सँ तर्पण करी –
ॐ मरकच्यादाय आगच्छन्तु।।
ॐमरीचिस्तृप्यताम्।
ॐ अत्रिस्तृप्यताम्।
ॐ अंगिरास्तृप्यताम्।
ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम्।
ॐ पुलहस्तृप्यताम्।
ॐ क्रतुस्तृप्यतेम्।
ॐ प्रचेतास्तृप्यताम्।
ॐ बशिष्ठस्तृप्यताम्।
ॐ भृगुस्तृप्यताम्।
ॐ नारदस्तृप्यताम्।
दिव्य पितृ तर्पण
जनेऊ अपशव्य अर्थात दाहिना कंधा पर लय दक्षिण मुँहे इ मंत्र पढि तर्पण करी-
ॐ अग्निष्वात्तास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम: 3 बेर
ॐ सौम्यास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम:।
ॐ हविष्मन्तस्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम:।
ॐ उष्मास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :।
ॐ वर्हिषदस्तृप्यन्तमिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :।
ॐ आज्यापास्तृप्यन्तामिदं जलन्तेभ्य: स्वधानम :।
यम तर्पण
ॐ यमाय नम:।
ॐ धर्माराजाय नम:।
ॐ मृतवे नम:।
ॐ कालाय नम:।
ॐ अन्तकाय नम:।
ॐ वैवस्वताय नम:।
ॐ सर्वभूतक्षयाय नम:।
ॐऔदुम्वराय नम:।
ॐ दध्नाय नम:।
ॐ नीलाय नम:।
ॐ परमेष्ठने नम:।
ॐ वृकोदराय नम:।
ॐ चित्राय नम:।
ॐ चित्रगुप्ताय नम:।
ॐ चतुर्दशैते यमा: स्वस्ति कुर्वन्तु तर्पिता।
पितृ तर्पण
इ मंत्र सँ सभ पितृके मोडा कुश सँ तीन तीन अंजुली जल तील संगे अपशव्य जनेऊ कय अर्थात दायाँ कंधा पर ऊल्टा जनेऊ धारण कय दी-
ॐ आगच्छन्तुमे पितरं इमं गृहं तपोञ्जलिम्।।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: पिता अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा-3बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: पितामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा-3 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: प्रपितामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3 बेर।
ॐ तृप्यध्वम्-3बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रो मातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3।
ॐ अद्य अमुक गोत्र: प्रमातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3।
ॐ अद्य अमुक गोत्रो वृद्धप्रमातामहो अमुक शर्मा तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा -3।
ॐ तृप्यध्वम्-3।
ई मंत्र सँ एक एक अंजली जल स्त्री पितरैनक दी-
ॐ अद्य अमुक गोत्रा माता अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा पितामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1 बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा प्रपितामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1बेर।
ॐ तृप्यध्वम्-1बेर।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा मातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा प्रमातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1।
ॐ अद्य अमुक गोत्रा वृद्धप्रमातामही अमुकी देवी तृप्यतामिदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा-1बेर।
ॐ तृप्यध्वम्।
आब पत्नी भाई संबन्धी आचार्य आओर गुरूके इ मंत्र सँ तर्पण-
ॐ येऽबान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा:।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु यश्चास्मत्तोऽभिवाञ्छति।।
ये मे कुले लुप्तिपिण्डा पुत्रदारा विवर्जिता:।
तेषांहि दत्तमक्षय्यमिंदमस्तु तिलोदकम्।।
आब्रह्मस्तम्ब पर्यन्तं देवर्षि पितृ मानवा:।
तृप्यन्तु पितर: सर्वे मातृ मातामहोदय:।।
अतीत कुल कोटीना सप्तद्विपनिवासिनाम्।
आब्रह्म भुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम्।।
आब इ मंत्र सँ स्नान केलहा भिजलाहा वस्त्र अंगपोछाके गारी जल खसा दी-
ॐ ये चाऽस्माकं कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृता:।
ते तृप्यन्तु मया दत्तैर्वस्वनिष्पीडिनोदकम्।।
आब सव्य अर्थात बायां कंधा पर जहिना जनेऊ पहिरल जाई छैक तीन बेर सूर्यदेव के तीन बेर जलक इ मंत्र से अर्घ दी-
ॐ नमोविवस्वते ब्रह्मण भास्वते विष्णु तेजसे।
जगत्सवित्रे शुचये सवित्रे कर्मदायिने।। ए
खऽअर्घ: ॐ भगवते श्रीसुर्याय नम:।
ॐ विष्णविष्णुर्हरिर्हरि:। इति।
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छन्दोग तर्पण विधान
छान्दोगी सब देव आ ऋषि तर्पण अहि प्रकार अहि मंत्रे दी
ॐ देवास्तृप्यन्ताम्-3 बेर।
ॐ ऋषियस्तृप्यन्ताम्-3बेर।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम्-3बेर।
पितृक तर्पण वाजसनेयि जकां सबटा होयत तथा जनेऊ सहित सभटा विधान एके अछि।
****पितृजीवी के तर्पण नहिं करक चाही।
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